राग रतलामी/ केरावत सर का निलंबन-पूरे देश के सामने आई पंजा पार्टी की मूर्खता
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-तुषार कोठारी
रतलाम। भला हो पंजा पार्टी का जिसकी मूर्खता की बदौलत रतलाम जैसे छोटे शहर को नेशनल टीवी चैनलों पर चर्चित होने का मौका मिल गया। केरावत सर को इतनी मकबूलियत तब भी नहीं मिली होगी,जब उन्हे राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था। लेकिन सावरकर के चित्र वाली कापियां उनके स्कूल में क्या बांटी गई,केरावत सर पूरे देश में चर्चा के विषय बन गए। केरावत सर को भी नेशनल टीवी चैनलों की लाइव बहसों में बुला लिया गया।
पंजा पार्टी की सेल्फ गोल करने की आदत बढती जा रही है। वीर सावरकर को खलनायक साबित करने के चक्कर में पंजा पार्टी अब किसी भी हद तक जाने को तैयार है। पंजा पार्टी के ठेकेदारों की सामान्य समझ भी शायद उनका साथ छोड गई है। वीर सावरकर को लेकर दिल्ली के टीवी चैनलों में बहस चलना और बात है,लेकिन जब मामला एक छोटे से गांव तक जा पंहुचता है,तो पता लगता है कि पंजा पार्टी का पागलपन किस हद तक जा पंहुचा है।
गांव में स्कूल में एक निजी संस्था द्वारा बांटी गई कापियों पर वीर सावरकर के चित्रों की जानकारी पंजा पार्टी के बडे नेताओं तक पंहुची,तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पंहुचा। फौरन शिक्षा विभाग के अफसरों को ठांसा जाता है। शिक्षा विभाग के अफसर भी अपने आकाओं को खुश करने के चक्कर में आनन फानन में प्राचार्य को निलंबित कर देते है। उन्हे लगता है कि इस कार्यवाही से पंजा पार्टी वाले उनके आका खुश हो जाएगें।
लेकिन यही बात पंजा पार्टी के लिए सेल्फ गोल साबित हो जाती है। ऐसे शिक्षक को निलंबित किया जाता है,जिसे खुद राष्ट्रपति श्रेष्ठ शिक्षक के रुप में सम्मानित कर चुके है। स्कूल के बच्चे भी नाराज हो जाते है। अफसरों के पास कहने बताने को कुछ नहीं है। पूछे जाने पर वे बगले झांकने लगते है।
प्र्राचार्य के निलंबन से नाराज बच्चे अफसरों के चक्कर काट रहे है,लेकिन किसी अफसर में इतना साहस नहीं है कि गलत को गलत कह सके। नाराज बच्चों ने जब परीक्षा देने से इंकार कर दिया तो तमाम अफसर उन्हे समझाईश देने पंहुच गए। लेकिन सवाल वहीं खडा रहा। कोई भी गलत को गलत कहने को राजी नहीं है।
सरकारी स्कूलों की हालत सबको पता है। सामान्य तौर पर कोई आम आदमी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढाना नहीं चाहता। ग्रामीण इलाकों में निजी स्कूल उपलब्ध नहीं है,इसलिए गांव वाले मजबूरी में बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते है। ऐसे बेकार सरकारी स्कूलों में जब केरावत सर जैसे लोग पंहुच जाते है,तो स्कूल की हैसियत महंगे निजी स्कूलों से भी ज्यादा हो जाती है। ऐसे शिक्षकों से पढने वाले बच्चों के लिए भी उनका स्कूली जीवन एक उपलब्धि बन जाता है।
लेकिन नेताओं को शिक्षा की गुणवत्ता जैसी बातों से कोई लेना देना नहीं है। उन्हे इससे कोई मतलब नहीं है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारी जाए। उन्हे तो सरकारी स्कूलों के मास्टरों के तबादलों में कमाई करने और शिक्षा बजट में कमाई के मौके ढूंढने से मतलब है। किसी योग्य शिक्षक को घटिया राजनीति के लिए निलंबित कर दिए जाने से किसी नेता का दिल नहीं पसीजता। पंजा पार्टी के तमाम नेता चुप्पी साधे बैठे है। बच्चे अब भी आंदोलन कर रहे है। उनका कहना है कि जब तक उनके सर स्कूल में नहीं आएंगे वे भी स्कूल नहीं जाएंगे।
बहरहाल,एक स्कूल में पंजा पार्टी द्वारा की गई मूर्खता को अब पूरा देश देख रहा है। जिले के एक छोटे से गांव के सरकारी स्कूल में दिखाई गई पंजा पार्टी की बेवकूफी अब पूरे देश के सामने तक जा पंहुची है। जिस किसी राजनीतिक फायदे की लालच में पंजा पार्टी ने यह कार्यवाही की,वह तो उन्हे मिला नहीं,इसके विपरित उनकी बेवकूफी पूरे देश के सामने आ गई। यह कोई छोटा नुकसान नहीं है।
आयोजक खुद ही अतिथि
वर्दी वालों को हर साल पहले महीने में सडक़ सुरक्षा के लिए एक सप्ताह मनाना होता है। इस सप्ताह में हर साल वही होता है,जो होता आ रहा है। स्कूली बच्चों को इक_ा किया जाता है। सप्ताह की शुरुआत वाले दिन और आखरी दिन स्कूली बच्चों को लाकर भाषण दिए जाते है और आखिर में नाश्ता करवा कर उन्हे बिदा कर दिया जाता है। इस बार की खासियत कुछ अलग थी। समापन समारोह के आमंत्रण पत्र में आमंत्रणकर्ता महकमे के बडे साहब थे। लोग हैरान तब हुए,जब उन्होने अतिथि का नाम देखा। आमंत्रणकर्ता बडे साहब अपने ही आयोजन में खुद ही अतिथि भी बन गए थे।